सुप्रीम कोर्ट: किडनैप हुए शख्स से अच्छा बर्ताव करने वाले आरोपी को उम्र कैद नहीं दे सकते

सुप्रीम कोर्ट: किडनैप हुए शख्स से अच्छा बर्ताव करने वाले आरोपी को उम्र कैद नहीं दे सकते
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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: योगेश साहू
Updated Thu, 01 Jul 2021 05:12 PM IST

सार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि अपहृत व्यक्ति के साथ अपहरणकर्ता ने मारपीट नहीं की, उसे जान से मारने की धमकी नहीं दी और उसके साथ अच्छा बर्ताव किया तो अपहरण करने वाले व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा नहीं दी जा सकती है।

सर्वोच्च न्यायालय
– फोटो : पीटीआई

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सुप्रीम कोर्ट ने अपहरण के मामले को लेकर एक बेहद अहम फैसला सुनाया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि यदि अपहृत व्यक्ति के साथ अपहरणकर्ता ने मारपीट नहीं की, उसे जान से मारने की धमकी नहीं दी और उसके साथ अच्छा बर्ताव किया तो अपहरण करने वाले व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 364ए के तहत आजीवन कारावास की सजा नहीं दी जा सकती है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय द्वारा अपहरण के एक मामले में आरोपी एक ऑटो चालक को दोषी ठहराने का फैसला रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। ऑटो चालक ने एक नाबालिग का अपहरण किया था और उसके पिता से दो लाख रुपये की फिरौती मांगी थी।

दोषी ठहराने के लिए तीन बातें साबित करनी होंगी
न्यायालय ने कहा कि धारा 364ए (अपहरण एवं फिरौती) के तहत आरोपी को दोषी ठहराने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा तीन बातों को साबित करना आवश्यक है। उसने कहा कि ये तीन बातें हैं- किसी व्यक्ति का अपहरण करना या उसे बंधक बनाकर रखना, अपहृत को जान से मारने की धमकी देना या मारपीट करना, अपहरणकर्ता द्वारा ऐसा कुछ करना जिससे ये आशंका बलवती होती हो कि सरकार, किसी अन्य देश, किसी सरकारी संगठन पर दबाव बनाने या किसी अन्य व्यक्ति पर फिरौती के लिए दबाव डालने के लिए पीड़ित को नुकसान पहुंचाया जा सकता है या मारा जा सकता है।

धारा 364ए के तहत आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा का जिक्र करते हुए न्यायालय ने कहा कि पहली स्थिति के अलावा दूसरी या तीसरी स्थिति भी साबित करनी होगी अन्यथा इस धारा के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
शीर्ष अदालत तेलंगाना निवासी शेख अहमद की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई है। उच्च न्यायालय ने दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अहमद की याचिका खारिज कर दी थी और उसे भादंसं की धारा 364ए के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

ऑटो चालक ने घर छोड़ने के बहाने किया था किडनैप
ऑटो चालक अहमद ने सेंट मैरी हाईस्कूल के छठी कक्षा के छात्र को उसके घर छोड़ने के बहाने अगवा कर लिया था। जब बच्चे का पिता फिरौती देने गया था उसी समय पुलिस ने बच्चे को छुड़ा लिया था। यह घटना 2011 की है और तब पीड़ित की उम्र 13 वर्ष थी। पीड़ित के पिता ने निचली अदालत को बताया था कि अपहरणकर्ता ने लड़के को कभी भी नुकसान पहुंचाने या जान से मारने की धमकी नहीं दी थी।

धारा 364ए के तहत दोषी ठहराने का फैसला रद्द
शीर्ष अदालत ने अहमद को धारा 364ए के तहत दोषी ठहराने का फैसला रद्द कर दिया। उसने कहा कि अपहरण का अपराध साबित हुआ है और अपीलकर्ता को धारा 363 (अपहरण का दंड) के तहत सजा दी जानी चाहिए, जिसमें सात साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता को सात साल के कारावास और पांच हजार रूपये के जुर्माने की सजा दी जानी चाहिए।

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने अपहरण के मामले को लेकर एक बेहद अहम फैसला सुनाया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि यदि अपहृत व्यक्ति के साथ अपहरणकर्ता ने मारपीट नहीं की, उसे जान से मारने की धमकी नहीं दी और उसके साथ अच्छा बर्ताव किया तो अपहरण करने वाले व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 364ए के तहत आजीवन कारावास की सजा नहीं दी जा सकती है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय द्वारा अपहरण के एक मामले में आरोपी एक ऑटो चालक को दोषी ठहराने का फैसला रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। ऑटो चालक ने एक नाबालिग का अपहरण किया था और उसके पिता से दो लाख रुपये की फिरौती मांगी थी।

दोषी ठहराने के लिए तीन बातें साबित करनी होंगी

न्यायालय ने कहा कि धारा 364ए (अपहरण एवं फिरौती) के तहत आरोपी को दोषी ठहराने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा तीन बातों को साबित करना आवश्यक है। उसने कहा कि ये तीन बातें हैं- किसी व्यक्ति का अपहरण करना या उसे बंधक बनाकर रखना, अपहृत को जान से मारने की धमकी देना या Judi Slot Online Jackpot Terbesar मारपीट करना, अपहरणकर्ता द्वारा ऐसा कुछ करना जिससे ये आशंका बलवती होती हो कि सरकार, किसी अन्य देश, किसी सरकारी संगठन पर दबाव बनाने या किसी अन्य व्यक्ति पर फिरौती के लिए दबाव डालने के लिए पीड़ित को नुकसान पहुंचाया जा सकता है या मारा जा सकता है।

धारा 364ए के तहत आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा का जिक्र करते हुए न्यायालय ने कहा कि पहली स्थिति के अलावा दूसरी या तीसरी स्थिति भी साबित करनी होगी अन्यथा इस धारा के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका

शीर्ष अदालत तेलंगाना निवासी शेख अहमद की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई है। उच्च न्यायालय ने दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अहमद की याचिका खारिज कर दी थी और उसे भादंसं की धारा 364ए के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

ऑटो चालक ने घर छोड़ने के बहाने किया था किडनैप

ऑटो चालक अहमद ने सेंट मैरी हाईस्कूल के छठी कक्षा के छात्र को उसके घर छोड़ने के बहाने अगवा कर लिया था। जब बच्चे का पिता फिरौती देने गया था उसी समय पुलिस ने बच्चे को छुड़ा लिया था। यह घटना 2011 की है और तब पीड़ित की उम्र 13 वर्ष थी। पीड़ित के पिता ने निचली अदालत को बताया था कि अपहरणकर्ता ने लड़के को कभी भी नुकसान पहुंचाने या जान से मारने की धमकी नहीं दी थी।

धारा 364ए के तहत दोषी ठहराने का फैसला रद्द

शीर्ष अदालत ने अहमद को धारा 364ए के तहत दोषी ठहराने का फैसला रद्द कर दिया। उसने कहा कि अपहरण का अपराध साबित हुआ है और अपीलकर्ता को धारा 363 (अपहरण का दंड) के तहत सजा दी जानी चाहिए, जिसमें सात साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता को सात साल के कारावास और पांच हजार रूपये के जुर्माने की सजा दी जानी चाहिए।

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