ओडिशा: जगन्नाथ मंदिर की आखिरी देवदासी का 90 की उम्र में निधन

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सार

मंदिर के रिकॉर्ड के अनुसार करीब 100 साल पहले मंदिर में 25 देवदासियां थी। वहीं 1980 तक केवल चार देवदासियां हरप्रिया, कोकिलाप्रव, पारसमणि और शशिमणि ही मंदिर में रह गईं थीं। उन तीनों की मौत के बाद केवल पारसमणि ही जीवित बची थीं।

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ओडिशा के पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर की आखिरी जीवित ‘देवदासी’ पारसमणि देवी का वृद्धावस्था संबंधी बीमारियों के कारण निधन हो गया। वह 90 वर्ष की थीं।

12वीं शताब्दी के इस तीर्थस्थल पर दशकों पहले देवदासी प्रथा समाप्त हो गई थी। पारसमणि लोगों के सहयोग के मंदिर के नगर बलिसाही में किराए के घर में रहती थीं। पारसमणि के दत्तक पुत्र प्रसन्ना कुमार दास न उनका अंतिम संस्कार किया।

देवदासियों का विवाह भगवान जगन्नाथ से हुआ था। भगवान जन्नाथ को ‘दिव्य पति’ के रूप में स्वीकार कर वह पूरे जीवन में कुवांरी रहती थीं। 1955 में एक कानून के जरिये ओडिशा सरकार ने मंदिर का प्रशासन शाही परिवार से अपने हाथ में ले लिया। उसके बाद धीरे-धीरे मंदिर में देवदासी प्रथा समाप्त हो गई।

जगन्नाथ मंदिर में नृत्यांगना और गायिका दो प्रकार की देवदासियां होती थीं। पारसमणि गायिका देवदासी थीं। वह भगवान के सोते समय भक्तिमय गीत गातीं थीं। पारसमणि को कुंदनमणि देवदासी ने गोद लिया था। पारसमणि ने अपना देवदासी का प्रशिक्षण महज सात वर्ष की उम्र से शुरू किया था।

मंदिर के रिकॉर्ड के अनुसार करीब 100 साल पहले मंदिर में 25 देवदासियां थी। वहीं 1980 तक केवल चार देवदासियां हरप्रिया, कोकिलाप्रव, पारसमणि और शशिमणि ही मंदिर में रह गईं थीं। उन तीनों की मौत के बाद केवल पारसमणि ही जीवित बची थीं।

विस्तार

ओडिशा के पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर की आखिरी जीवित ‘देवदासी’ पारसमणि देवी का वृद्धावस्था संबंधी बीमारियों के कारण निधन हो गया। वह 90 वर्ष की थीं।

12वीं शताब्दी के इस तीर्थस्थल पर दशकों पहले देवदासी प्रथा समाप्त हो गई थी। पारसमणि लोगों के सहयोग के मंदिर के नगर बलिसाही में किराए के घर में रहती थीं। पारसमणि के दत्तक पुत्र प्रसन्ना कुमार दास न उनका अंतिम संस्कार किया।

देवदासियों का विवाह भगवान जगन्नाथ से हुआ था। भगवान जन्नाथ को ‘दिव्य पति’ के रूप में स्वीकार कर वह पूरे जीवन में कुवांरी रहती थीं। 1955 में एक कानून के जरिये ओडिशा सरकार ने मंदिर का प्रशासन शाही परिवार से अपने हाथ में ले लिया। उसके बाद धीरे-धीरे मंदिर में देवदासी प्रथा समाप्त हो गई।

जगन्नाथ मंदिर में नृत्यांगना और गायिका दो प्रकार की देवदासियां होती थीं। पारसमणि गायिका देवदासी थीं। वह भगवान के सोते समय भक्तिमय गीत गातीं थीं। पारसमणि को कुंदनमणि देवदासी ने गोद लिया था। पारसमणि ने अपना देवदासी का प्रशिक्षण महज सात वर्ष की उम्र से शुरू किया था।

मंदिर के रिकॉर्ड के अनुसार करीब 100 साल पहले मंदिर में 25 देवदासियां थी। वहीं 1980 तक केवल चार देवदासियां हरप्रिया, कोकिलाप्रव, पारसमणि और शशिमणि ही मंदिर में रह गईं थीं। उन तीनों की मौत के बाद केवल पारसमणि ही जीवित बची थीं।

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